मसूरी: मसूरी में दीपावली के एक माह बाद मनाए जाने वाले पारंपरिक बग्वाल पर्व का आयोजन अगलाड़ यमुना घाटी विकास मंच के तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कैंपटी मार्ग स्थित जीरो प्वाइंट पर हुआ, जहां जौनपुर, जौनसार और रंवाई घाटी के निवासियों सहित बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने भाग लिया।
मंच के अध्यक्ष शूरवीर रावत ने बताया कि बग्वाल पर्व की शुरुआत उस समय हुई जब भगवान श्रीराम द्वारा रावण वध की सूचना इस क्षेत्र में एक माह की देरी से पहुंची। तब से यहां यह पर्व दीपावली के एक माह बाद बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि मसूरी में रहने वाले अगलाड़ यमुना घाटी के निवासियों के लिए इस आयोजन का उद्देश्य उनकी सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखना है।
पारंपरिक उल्लास और सांस्कृतिक विरासत
इस पर्व के दौरान पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर नृत्य किया गया और स्थानीय रीति-रिवाजों का पालन करते हुए आग जलाकर पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद “भेलो खेलना” और सामूहिक नृत्य जैसे आयोजन किए गए। विशेष पारंपरिक व्यंजन, जैसे पकोड़ी और अस्के, बनाए गए और बिरूडी फेंकने की रस्म अदा की गई।
शूरवीर रावत ने बताया कि इस पर्व के आयोजन का उद्देश्य गांव छोड़कर शहरों में बस चुके लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना है। भाजपा नेत्री मीरा सकलानी ने कहा कि बग्वाल पर्व पर्यावरण अनुकूल है, क्योंकि इसमें पटाखों के बजाय लोक संगीत और नृत्य का आनंद लिया जाता है।
उत्सव में गणमान्य लोगों की उपस्थिति
इस आयोजन में बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। इनमें कांग्रेस की प्रदेश महामंत्री गोदावरी थापली, पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला ,पूर्व पालिकाध्यक्ष ओपी उनियाल पूर्व पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल, व्यापार संघ के अध्यक्ष रजत अग्रवाल, और अन्य प्रमुख लोग शामिल थे।
पर्यटकों ने भी लिया आनंद
कैंपटी मार्ग पर आयोजित इस उत्सव में पर्यटकों ने भी पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लिया। आयोजकों ने इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखने पर जोर देते हुए कहा कि ये न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं, बल्कि समुदाय को भी एकजुट करते हैं।
बग्वाल पर्व का आयोजन न केवल एक परंपरा का पालन है, बल्कि यह अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़े रहने का एक प्रयास है, जो आज के दौर में विशेष महत्व रखता है।