मसूरी: ग्रीन लाइफ संस्था के तत्वाधान एवं छावनी परिषद लंढौर के सहयोग से चार दुकान में 10वां दो दिवसीय लंढौर मेला आयोजित किया गया। इस मेले में बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने भाग लिया और उत्तराखंड की संस्कृति, व्यंजनों और हस्तशिल्प का भरपूर आनंद उठाया।
पहाड़ी व्यंजन और हस्तशिल्प बने आकर्षण का केंद्र
मेले में पहाड़ी व्यंजनों के स्टॉल लगाए गए, जिनमें पहाड़ी दाल के पकौड़े, पहाड़ी खाने की थाली और अन्य पारंपरिक पकवान शामिल थे। इसके साथ ही उत्तराखंड के पहाड़ी उत्पादों और हस्तशिल्प के स्टॉल भी आकर्षण का केंद्र बने। पाश्चात्य भोजन के स्टॉलों पर भी खासी भीड़ देखने को मिली।
आयोजन का उद्देश्य
ग्रीन लाइफ संस्था के निदेशक विवेक वेणीवाल ने बताया कि यह मेला स्थानीय उत्पादों को मंच प्रदान करने और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है। मेले में स्थानीय किसानों और उत्पादकों को अपने उत्पाद बेचने का अवसर मिलता है, जिससे उनकी आर्थिकी सुदृढ़ होती है और यहां का पैसा स्थानीय स्तर पर ही सर्कुलेट होता है।
छावनी परिषद का योगदान
छावनी परिषद लंढौर की सीईओ अंकिता सिंह ने पहली बार मेले में प्रतिभाग किया और इसे उत्तराखंड की संस्कृति के लिए एक उत्कृष्ट पहल बताया। उन्होंने पर्यटकों से आग्रह किया कि वे छावनी क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें और स्थानीय उत्पादों का आनंद लें।
व्यापार संघ का समर्थन
व्यापार संघ के अध्यक्ष रजत अग्रवाल ने लंढौर कैंट को मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में लंढौर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा है, और मसूरी आने वाला हर पर्यटक अब लंढौर का दौरा करता है।
पर्यटकों का उत्साह
दिल्ली से आए पर्यटक अंकित भंडारी ने कहा, “इस मेले में आकर हमें रीयल उत्तराखंड की फीलिंग आई। यहां के उत्पाद और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। मौसम भी बेहद सुहाना है, और मेला बहुत अच्छा और फ्रेश लग रहा है। यह अनुभव हमें बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करेगा।”
विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
इस अवसर पर छावनी परिषद के अध्यक्ष ब्रिगेडियर संजोग नेगी, आईटीएम के निदेशक सत्य प्रकाश डबराल, पूर्व उपाध्यक्ष महेश चंद, पूर्व सभासद पुष्पा पडियार, चंद्रकला सयाना, विजय लक्ष्मी काला, राजेश शर्मा और अतुल अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
लंढौर मेला न केवल स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देता है, बल्कि पर्यटकों को उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से भी जोड़ता है। आयोजकों ने इसे भविष्य में और बड़े स्तर पर आयोजित करने का संकल्प लिया है।