उत्तराखंड में दीपावली के उत्सव के साथ केदारनाथ उपचुनाव की तैयारियों का माहौल गरमाया हुआ है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने चुनावी रणनीति को लेकर जोर-शोर से काम शुरू कर दिया है। इस बार दोनों पार्टियों ने पुराने चेहरों पर दांव लगाया है, जिससे यह तय हो गया है कि चुनावी प्रचार में त्योहारों का लाभ उठाने का प्रयास किया जाएगा।
मतदाता और जाति समीकरण
केदारनाथ विधानसभा सीट पर लगभग 90,000 मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। जाति समीकरण की दृष्टि से, राजपूत मतदाता सबसे अधिक हैं, जो लगभग 54,000 की संख्या में हैं। इसके अलावा, 19,000 के करीब अनुसूचित जाति (SC) मतदाता, 16,000 के करीब ब्राह्मण मतदाता, और अन्य जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के मतदाता भी हैं।
चुनावी मुद्दे
इस चुनाव में प्रमुख मुद्दों में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान और राहत, चार धाम यात्रा, पर्यटन, और रोजगार शामिल हैं। भले ही चुनाव केदारनाथ विधानसभा में हो रहा है, लेकिन यह पूरी धामी सरकार की साख के लिए महत्वपूर्ण है। राज्य के अन्य मुद्दे भी इस चुनाव में प्रमुखता से सामने आएंगे, और कांग्रेस पार्टी धामी सरकार के कार्यों और अन्य मुद्दों को लेकर भाजपा पर आक्रमण करने की योजना बना रही है।
प्रत्याशी का परिचय
कांग्रेस की ओर से मनोज रावत को प्रत्याशी बनाया गया है, जो पत्रकारिता के क्षेत्र से राजनीति में आए और 2017 में कांग्रेस के टिकट पर केदारनाथ सीट से विधायक बने। भाजपा की प्रत्याशी आशा नौटियाल, जो दो बार इस सीट से विधायक रह चुकी हैं, पहले भी चुनावी मैदान में अपनी चुनौती पेश कर चुकी हैं।
आशा नौटियाल ने 2017 में जब भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा। फिर भी, भाजपा ने उन्हें पार्टी में वापस लिया और वे वर्तमान में महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष हैं।
चुनावी इतिहास
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से अब तक पांच बार केदारनाथ सीट पर चुनाव हो चुके हैं। इनमें से भाजपा ने तीन बार और कांग्रेस ने दो बार जीत हासिल की है। 2002 में आशा नौटियाल ने कांग्रेस की प्रत्याशी शैला रानी रावत को हराया था। 2007 में भी उन्होंने फिर से जीत दर्ज की, लेकिन 2012 में शैला रानी रावत ने उन्हें मात दी। 2017 में, आशा को टिकट न मिलने पर शैलारानी रावत को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन मनोज रावत ने उन्हें हराकर फिर से कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की थी।
वर्तमान स्थिति
इस उपचुनाव में भाजपा के लिए आशा नौटियाल की राह आसान नहीं है। चुनावी माहौल के मद्देनज़र, दोनों पार्टियों को यह देखना होगा कि उनके प्रत्याशी किस तरह से मतदाताओं से जुड़ते हैं और किसकी रणनीति सफल रहती है। आगामी चुनावी नतीजे यह स्पष्ट करेंगे कि कौन सी पार्टी इस बार केदारनाथ सीट पर कब्जा जमाने में सफल होती है।
इस प्रकार, दीपावली का उत्सव और चुनावी राजनीति का यह मिलाजुला माहौल उत्तराखंड की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है।